नई संसद नहीं नया भारत चाहिए...



देश की जीडीपी रसातल में है और इस समय देश बडे आर्थिक संकट से गुजर रहा है। लेकिन केन्द्र सरकार नई संसद बनाने पर अमादा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते दिनों नई संसद भवन का भूमिपूजन भी कर दिया। 20 हजार करोड राशि से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट मूर्त रूप लेगा । मूल भवन के निर्माण पर 971 करोड रुपए खर्च होंगे।
अब सवाल यह उठता है कि जब देश बेहद आर्थिक संकट में है और व्यापार गतिविधियां रुकी हुईं हैं, बेरोजगारी, मंहगाई आसमान छू रही है। लाखों लोग नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं, देश का युवा बेरोजगार है जिसके पास आज काम नहीं तो। कोरोना संकट में जब अनेकों सरकारी प्रोजेक्ट रोक दिए गए हैं और कई विभागों के बजट में कटौती की गई है तो इन हालातों में क्या सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की देश को जरुरत है। कई देशो के संसद भवन की तुलना में हमारी संसद जवान है।
भारत के संसद भवन को सौ साल नहीं हुए। वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना हमारा संसद भवन वर्ष 1927 में बनकर तैयार हुआ था। जो हमारे देश और संविधान की गरिमा का प्रतीक है।
इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम विधान भवनों में की जाती है। इसकी वास्तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है। इसकी सुरक्षा और जीर्णशीर्ण की बात कर सरकार नए भवन तैयार करना जरुरी बता रही है।
आज के देश को नई संसद भवन की आवश्यकता नहीं बल्कि न्यू इंडिया की जरुरत है एक ऐसा भारत जिसमें हर जाति, हर धर्म, हर वर्ग को समान अवसर हो, जहां पक्षपात न हो, जहां समानता हो, युवाओं के लिए बेहतर रोजगार हो, ऐसा भारत जिसमें किसान कर्ज के कारण आत्महत्या न करें। खेती के लिए किसान को साहूकार से कर्ज न लेना पडे। गरीब, मजदूर, होशिए पर खडे व्यक्ति को भी मूलभूत सुविधा मिल सके। मजदूर के बच्चें को उच्च शिक्षा मिले।
एक ऐसा भारत में जिसमें भेदभाव न हो अमीर-गरीब का। सामान शिक्षा, सामान स्वास्थ्य सरकारों की प्राथमिकता होना चाहिए। लेकिन मौजूदा सरकार को इतिहास रचने का शौक चर्राया है जम्मू कश्मीर में 370 हटाया, नागरिकता कानून की चर्चा, नवरत्न कंपनियों को बेचने की तैयारी। सरकार के फैसलों पर सवाल उठाने वालों को राष्ट्रदोही और कहा जाता है। किसान संगठनो से बिना सलाह-मशविरा किए कृषि कानून बनाया और अब किसान विरोध कर रहे हैं तो किसानों को खालिस्तानी बताया जा रहा है। किसान आंदोलन से केंद्र सरकार को चुनौती मिल रही है, फेक न्यूज प्रोपेगंडा के बाद भी किसान बंटे नही। किसानों की भांति ही देशवासियों को सवाल उठाने होंगे कि नई संसद की जरुरत अभी क्यो? .
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