राजनीति की अबूझ पहेली हैं रमेश सक्सेना !



जलेबी आपने खाई होगी। यदि जलेबी में से चासनी निकाल देंगे तो बेस्वाद हो जाएगी। कुछ ऐसा ही मामला सीहोर की राजनीति का है। कद्दावर सहकारिता नेता ओर पूर्व विधायक रमेश सक्सेना के नाम के बिना सीहोर का राजनीतिक अध्याय अधूरा ही कहलाएगा। सीहोर के छोटे से गाँव बरखेड़ा हसन से निकलकर मध्यप्रदेश की छात्र राजनीति में जब धाक जमाई जिस दौर में छात्र नेताओं की तूती बोलती थी। बदलाव की चाह रखने वाले यह विद्रोही नेता युवा तुर्क कहलाते थे। वैसे आज के दौर में सत्ता से सवाल पूछने वालों को राष्ट्रद्रोही कह देना चलन बना दिया गया। यह पर्दा भी एक दिन हटेगा।
सक्सेना कांग्रेस से निर्दलीय फिर भाजपा में शामिल हुए।
सीहोर विधानसभा से चार बार विधायक रहे। लेकिन अपने खुर्रम स्वभाव के कारण मंत्री नही बन सके।
सहकारिता में बेजोड़ समझ रखने के कारण सहकारिता राजनीति के प्रादेशिक नेता बने।
कांग्रेस, भाजपा या फिर निर्दलीय वह सीहोर में राजनीति का पावर सेंटर ही रहे।
करीब 5 दशक से वह सक्रिय राजनीति में है और 30 साल से अधिक समय से जिला सहकारी बैंक पर उनका और परिवार का वर्चस्व रहा है।
वर्तमान में वह कांग्रेस में है और किसी पद पर भी नही।
लंबे बसंत के बाद यह उनके राजनीतिक पतझड़ के दिन चल रहे हैं।
लेकिन फिर भी उनकी अहमियत को कोई कम नही आंक सकता। पूर्व सीएम नेता कमलनाथ के करीबी नेताओं में उनकी गिनती की जाती है। इस ढलती उम्र में भी वह युवाओं का आकर्षण हैं।
रमेश सक्सेना की राजनीति के अनेको किस्से, कहानियां हैं जिन्हें लोग सुनना, सुनाना पसन्द करते हैं।
उनके व्यक्तित्व की चर्चा विरोधी भी करते हैं। जितने उनके समर्थक है उतने ही आलोचक भी है। समर्थकों के लिए वह पारस के समान हैं, जिसको छू लिया वो सोना हो गया।
फर्श से अर्श और फिर पतझड़ में पद और पावर आता जाता रहा, एक चीज जो हमेशा उनके साथ रहे वह हैं उनके समर्थक। राजनीतिक चर्चाओं में उनका नाम जरूर ही शामिल होता है। वह कब कौन सी चाल चलने वाले हैं इसका अन्दाजा कोई नही लगा सका। रमेश सक्सेना राजनीति की अबूझ पहेली हैं। जिसे समझना आसान नही!
एक निठल्ले की कलम से शहर के लाडले नेता रमेश सक्सेना ( चाचा जी ) को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !.
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